बिटकॉइन बनाने में जितनी बिजली खर्च होती है, उससे मुंबई जैसे बड़े महानगर की बिजली की जरूरत पूरी की जी सकती है. डच इकनॉमिस्ट एलेक्स डी व्रीज (Alex de Vries) की एक स्टडी के मुताबिक बिटकॉइन से हर साल 38.10 एमटी (मिलियन टन) कार्बन फुटप्रिंट पैदा होता है.
एक स्टडी के मुताबिक मुंबई का कार्बन फुटप्रिंट करीब 32 एमटी और बेंगलोर का 21.50 एमटी है. हाल में माइक्रोसॉफ्ट के को-फाउंडर बिल गेट्स ने हाल में एक इंटरव्यू में कहा था कि बिटकॉइन में प्रति ट्रांजैक्शन जितनी बिजली खर्च होती है, उतनी किसी और में नहीं होती है.
कैम्ब्रिज की रिसर्च में पता लगा है कि क्रिप्टोकरेंसी की माइनिंग के लिए बहुत ज्यादा बिजली की जरूरत होती है. इसके साथ ही ट्रांजेक्शन को वैरीफाई करने के लिए हैवी कंप्यूटर कैलकुलेशंस भी चाहिए होती हैं.
रिसर्चर्स के मुताबिक बिटक्वॉइन की माइनिंग में 121.36 टेरावॉट आवर्स की बिजली पूरे एक साल में लग जाती है. जब तक करेंसी की कीमत कम नहीं होगी, इसमें भी कोई गिरावट आने की आशंका नहीं है.
आलोचकों की मानें तो ऐसे में टेस्ला ने बिटक्वॉइन में निवेश करने का जो फैसला लिया है, वो इसके पर्यावरण को कमजोर करता है.
फरवरी माह में बिटक्वॉइन की कीमत रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई थी और इसने 48,000 डॉलर का रिकॉर्ड छू लिया था. कीमतों में इजाफा टेस्ला के ऐलान के बाद ही हुआ था. बयान में कहा गया था कि उसने 1.5 बिलियन डॉलर के बिटक्वॉइन खरीदे हैं और वो इसे आने वाले समय में पेमेंट के तौर पर स्वीकार करने के लिए रेडी है. मगर बिटक्वॉइन की बढ़ती कीमतें माइन के बिजनेस से जुड़े लोगों के लिए और ज्यादा फायदेमंद हैं क्योंकि फिर मशीनों की मांग और बढ़ जाएगी.
कैम्ब्रिज की रिसर्च की टीम में शामिल माइकल रॉच के मुताबिक जैसे-जैसे कीमतें बढ़ेंगी, एनर्जी का कजम्पशन बढ़ेगा. रॉच ने बीबीसी को दिए इंटरव्यू में कहा था कि बिटक्वॉइन बहुत ज्यादा बिजली की खतप करता है और इसकी वजह इसकी डिजाइनिंग है. इसमें कुछ भी बदलाव नहीं होने वाला है क्योंकि जब तक बिटक्वॉइन की कीमत नहीं कम होंगी, बिटक्वॉइन इसी तरह से बिजली की खपत करता रहेगा.
कैम्ब्रिज की तरफ से तैयार एक ऑनलाइन टूल ने जो नतीजे दिए थे, वो चौंकाने वाले थे. इन नतीजों के मुताबिक बिटक्वॉइन का बिजली उपभोग अर्जेंटीना और नीदरलैंड्स ही नहीं बल्कि यूनाइटेड अरब अमीरात (यूएई) और नॉर्वे से भी ज्यादा है. इन नतीजों के मुताबिक अर्जेंटीना में 121 टेरावॉट बिजली, नीदरलैंड्स में 108.8 टेरावॉट बिजली और यूएई में 113.20 टेरावॉट बिजली तो नॉर्वे में 122.20 टेरावॉट बिजली एक साल में प्रयोग में आती है. जितनी बिजली बिटक्वॉइन में लगती है उससे अगले 27 सालों तक यूनाइटेड किंगडम में सभी इलेक्ट्रिक केटल को चलाया जा सकता है.
बिटक्वॉइन माइिनंग यानी वह प्रक्रिया जिसमें कम्प्यूटिंग पावर के प्रयोग से ट्रांजेक्शन को आगे बढ़ाया जाता है. इसके तहत नेटवर्क को पहले सिक्योर किया जाता है और फिर जितने लोग इससे जुड़े हैं, उसे सिंक्रोनाइज किया जाता है. बिटक्वॉइन आज की तारीख में सबसे महंगी करेंसी है. बिटक्वॉइन की माइनिंग को क्रिप्टोग्राफी की मदद से अंजाम दी जाती है. इसकी माइनिंग सीमित होती है और जैसे-जैसे इसकी माइनिंग बढ़ती है, इसमें मुनाफा कम होता जाता है.
जिस तरह से डॉलर, पौंड, यूरो या रुपए का प्रयोग आप ट्रांजेक्शन में करते हैं, उसी तरह से बिटक्वॉइन का प्रयोग किया जाता है. इसकी कीमतों में लगातार बदलाव होती रहती है. यह मांग और आपूर्ति पर ही पूरी तरह से निर्भर होती है. नए बिटक्वॉइन बनाने की प्रक्रिया को माइनिंग कहा जाता है. प्रोटोकॉल के मुताबिक सीमित मात्रा में ही इनकी माइनिंग की जा सकती है. बिटक्वॅाइन बनाने की प्रक्रिया एक कॉम्पटीटिव बिजनेस के तहत होती है. जैसे-जैसे माइनर्स की संख्या बढ़ती है बिटकॉइन से मुनाफा कमाना कठिन होता जाता है. कोई भी अथॉरिटी बिटक्वॉइन से मुनाफे को बढ़ाने के लिए सिस्टम को कंट्रोल नहीं कर सकती है.
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