इस छोटी सी समय यात्रा को लिखने के लिये मुझे उस एक घटना ने विवश कर दिया, उन छोटी छोटी सी लड़कियो की आँखो में अपने पिता के लिये नफरत थी और चेहरे पर उदासी । मैं उस समय इलाहाबाद नयी-नयी ही गयी थी, रविवार की छुट्टी थी और मेरा मन इलाहाबाद घूमकर वहाँ की नई नई चीजों को देखने और उनके बारे में जान लेने को उत्सुक था । हम सभी ने ,मेरे भाई और भाभी ने मिलकर कहीं घूमने जाने का प्लान बनाया और डिसाइड किया गया कि नैनी पुल देखने जाया जाये । हम लोग शाम में नैनी पुल के लिए कैब से निकले और शाम के 5 बजे हम नैनी पुल पर थे । नज़ारा काफी शानदार था, यमुना बाढ़ पर थी महीना सावन का था । भोलेनाथ के दीवाने कांवड़ यात्री अपने जोश में थे और जोर जोर से भोलेनाथ की जय- जयकाऊरों के साथ शोर मचाते हुये अपनी यात्रा की ओर अग्रसर थे । काफी भीड़ थी शाम का समय था आस -पास के लोग घूमने निकले थे । ऊपर पुल से देखने पर दूर-दूर तक पानी ही पानी दिखाई दे रहा था और मंदिरों की घंटियों की आवाज गूँज रही थी । हम लोग पुल से नीचे उतर कर मन्दिर के पास पहुंचे वहाँ बहुत सी नावें थी हम लोग नाव में बैठे और नाव एक तरफ मैं और दूसरी तरफ़ भाभी पैर नीचे करके बैठ गए भैया मन में ही गुस्सा कर रहे थे और हम उनके गुस्से को समझ नहीं पा रहे थे क्योंकि यमुना बाढ़ पर थी और पानी में बहकर जलीय और खतरनाक जीवों के आ जाने का डर था । नाव बाला काफी समाजिक व्यक्ति था उसने हमे अपने बारे में बहुत कुछ बताया ,कैसे वो अपने परिवार और बच्चों के अपना जीवन निर्वाह करता है उसने हमें ये भी बताया कि वहाँ लोग पुल से कूदकर आत्महत्या कर लेते हैं और उन लोगों को निकालने के लिये उसे पैसे दिये जाते हैं और उन पैसों में से पुलिस उसे मेहनत भर तक के पैसे नहीं देती ।
वहाँ पर सबसे अधिक आकर्षित कर देने घटना और उसी घटना ने मुझे उस नैनी पुल के बारे में लिखने को विवश कर दिया । हम लोग नाव से उतरकर मन्दिर देखने गये थे जहाँ दो भोली-भाली छोटी छोटी लडकियाँ बैठी पैसे इकठ्ठा कर रही थी,उनकी मजबूरी ने उन्हे वहाँ बैठने को मजबूर किया था वरना उनकी उम्र स्कूल में बैठने की थी । हम लोग उनके पास गये भाई ने उन्हे कई सारे 2-5 के सिक्के जो भी उनके पास थे हाथ में थमा दिये और उनसे बातें करने लगे । उन्होंने बताया कि उनके पिता शराब पीकर घर में पड़े रहते हैं ,वो बच्चे कूड़ा बीनते हैं और माँ दूसरे घरों में बर्तन साफ करके घर चलाती हैं । उन बच्चों के दिलों में अपने पिता के लिए गहरा गुस्सा था और होता भी क्यों नहीँ आखिर उन बच्चों के जीवन को बर्बाद होने में उनके पिता जिम्मेदार थे,उन बच्चों की असली जगह स्कूल थी और वो सड़क पर अपने पिता की वजह से थे ।
उन्हें देखकर मन में एक टीस उठी कि दुनिया में कितनी तरह के जीवन हैं,जो जिन्दगी हम जी रहे हैं वो कितनी अलग है, उन्हे देखकर उनके लिये कुछ करने का मन हुआ उस समय मैं उनकी कुछ खास मदद नहीं कर पायी, हम लोगों ने उनकी जो थोड़ी मदद सी मदद थी वो बच्चे उससे बहुत खुश थे और उसके बाद वो अपने घर चले गये थे । हम कुछ देर बाद अपने घर चले आये और बहुत रात तक मै उन बच्चों के बारे में सोचती रही ।
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