सुवह- सुवह ही सभी बच्चों का गली के कोने पर इकट्ठे हो जाना। स्कूल की घंटी बजने का वो मुश्किल से प्रेरित, रस्ते भर मस्ती और गपशप। स्कूल बाला समय और स्कूल बाले दोस्त मन के जीवन में ऐसे होते हैं जैसे प्रक्रति के लिए वसन्त। जैसे वसंत आने पर पेड़-फूल बाग-फूलों के फूलों से भर जाते हैं वैसे ही हर व्यक्ति अपने बचपन में स्कूल बाले दोस्तों के साथ वसंत के फूलों के जैसे मुस्कुराता है। समाज के लोगों के बातों से बहुत दूर, ना ना कोई चिंता होती है न ही कोई डर है। याद करें। वो खूबसूरत दिन जब आप-हम अपने दोस्त अपने दोस्तों के साथ स्कूल जाते थे कभी वो हमें बुलाने हमारे घर आते हैं तो कभी हम अपने घर जाते हैं। स्कूल से लौटते वक़्त ही सब मिलकर तय कर लेते हैं कल कौन कौन आयेगा जो भी नहीं आने को बोल देता है सभी का स्कूल जाने का प्लान ही खत्म कर देने का मूड हो जाता है। हम सब जो टिफिन घर से लेते हैं उसे आपस में बांट खाते हैं, कभी मन करता है तो बदल लेता है और हम एक-दूसरे का खाना खाते हैं। रस्ते में पड़ने वाले बाले पेड़ों पर वेबजह ही डंडे थना और रास्ते भर गपशप करना। ये प्रतिदिन का कार्य था। स्कूल में टीचर के आते ही सीधा-साधे बनकर बैठ जाना और अपनी तारीफ सुनना क्या मज़ा देता है। हम एक दूसरे बैग छुपा देते हैं और फिर अगर कोई शिकायत टीचर से कर देती है और हमारी डांट पड़ जाती है तो रास्ते में उसे पीटा बदला जाता है। स्कूल में छुट्टी की घंटी का इन्तजार ऐसे रहता है जैसे कैसे दिनो से जेल में बंद हैं और घंटी बज जाने पर ऐसे भागते जैसे सिर्फ़ हमे ही घर जाना है, टीचर लोगों का तो अपना घर ही नहीं है। छुट्टी के बाद टीचर अगर कोई इन्फोर्मेशन देते और बो थोड़ा लम्बी हो जाती तो बैठना तो मुश्किल ही हो जाता। स्कूल में वे इंटरबल में पकड-ड्रोक का खेल हर एक टीम को परेशान करने का खेल देते हैं। कितना सुंदर समय था। वो दोस्त जिनके साथ खाना पीना खेलने होता है वो हमारे परिवार से बहुत ज्यादा हमे समझते हैं, हमारे नाराज या दुखी होने पर उनके चेहरे की भी मुसकन गायब हो जाती है और उन्हें कुछ हो जाने पर हमारा खाना गले से नीचे उतरता है। उनकी समस्या हमारी समस्या होती है और उनकी खुशी हमारी खुशी। उस बचपन की दोस्ती में एक नशा होता है, फूलों पर मंडराती तितलियों को दूर तक वेबजह ही भगा देना और चारों तरफ घूमकर घूमकर हवा में उड़ने की कोशिश करना। कितना अंजान और कितना खूबसूरत। कभी मन में नहीं आता कि जिन्दगी और भी कुछ है और अब वो बचपन एक सपना सा लगता है और उस सपने को बार-बार देखने का दिल करता है। कितनी खूबसूरत तोहफा होती है दोस्ती बचपन की हर व्यक्ति के जीवन में। फूलों पर मंडराती तितलियों को दूर तक वेबजह ही भगा देना और चारों तरफ घूमकर घूमकर हवा में उड़ने की कोशिश करना। कितना अंजान और कितना खूबसूरत। कभी मन में नहीं आता कि जिन्दगी और भी कुछ है और अब वो बचपन एक सपना सा लगता है और उस सपने को बार-बार देखने का दिल करता है। कितनी खूबसूरत तोहफा होती है दोस्ती बचपन की हर व्यक्ति के जीवन में। फूलों पर मंडराती तितलियों को दूर तक वेबजह ही भगा देना और चारों तरफ घूमकर घूमकर हवा में उड़ने की कोशिश करना। कितना अंजान और कितना खूबसूरत। कभी मन में नहीं आता कि जिन्दगी और भी कुछ है और अब वो बचपन एक सपना सा लगता है और उस सपने को बार-बार देखने का दिल करता है। कितनी खूबसूरत तोहफा होती है दोस्ती बचपन की हर व्यक्ति के जीवन में।
(सहमति हो तो लाइक करें)