Published Nov 19, 2020
2 mins read
436 words
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Personal Story
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My Diary (or) Journal

Happy International Men's Day

Published Nov 19, 2020
2 mins read
436 words

क्या तुमने किसी मर्द को देखा हैं?

उसके दर्द को कभी समझा हैं?

नहीं देखा तो आज देखो।

अच्छी और बुरी दोनों तरह से समझो।

क्योंकि वो देखना जरूरी हैं।

जिसने अपनी फीलिंग्स अपने जिगर में रोका हैं।

ये आसान बात नही होती 

दुनिया मर्दो के लिए आसान नही होती।

आपको पता नहीं की मर्दो की कितनी कठिन डगर है।

आपको पता नही आज की अखबार की वो खबर हैं।

जेब की कमाई चाय-सुट्टे में उडाता हुआ।

पुरे घर के लिए अकेला कमाता हुआ।

खुद दुखी होकर भी नया साल मनाता हुआ।

मिल जायेगा कोई मर्द तुम्हे अपने दुःख-दर्द को छुपाता हुआ।

सरहद पर तुम्हारे लिए लडता हुआ।

समाज में चार लोगो से डरता हुआ।

एक फौजी के सीने का नाप भी है।

हां वो एक बेटी का बाप भी है।

तूफानों में भी अपना पैर जमता हुआ।

मेहनत के पसीने से नहाता हुआ।

मिल जायेगा कोई मर्द तुम्हे।

अपना दर्द छुपाता हुआ।

वो एक भाई भी है।

राखी से बंधी उसकी कलाई भी हैं।

वो इनवर्टेड भी हैं।

बैटमैन वाली उसपे एक टीशर्ट भी हैं।

एक लड़की पर वो मरता भी हैं।

लेकिन उससे कहने से डरता भी हैं।

दिल उसका भी टुटा हैं, लेकिन वो नाराज नही हैं।

वो ऐसी चीज हैं जिसमे आवाज नही हैं।

किसी का दुपट्टा उनके लिए खिलौना नही हैं।

आशिक तो हैं लेकिन प्लेबॉय नही हैं।

हजार परेशानियों में मुस्कुराता हुआ।

लाख तकलीफ में भी न कुछ बताता हुआ।

हाथ उठाये तो बेदर्द भी हैं।

मार खा जाये तो नामर्द भी हैं।

माना कि वो परफेक्ट नही हैं।

क्या इसीलिए उसकी कोई रिस्पेक्ट नहीं हैं।

रोज अंदर से थोड़ा थोड़ा मरता हुआ।

अँधेरे से ज्यादा सवेरा से डरता हुआ।

हर कंडीशन में खुद को एडजस्ट करता हुआ।

मुर्गा होकर कसाई पर भरोसा करता हुआ।

खुद को भूखा रखकर परिवार को खिलाता हुआ।

“All Men are dog” की गाली भी दिन चार बार सुनता हुआ।

शॉपिंग बैग्स का बोझ उठाता हुआ।

क्रेडिट कार्ड से नजरे चुराता हुआ।

सबकी फ़िज़ूलख़र्ची खर्ची का उसके पास हिसाब हैं।

उसका चेहरा एक खुली किताब हैं।

ओवरटाइम में वो सोता नही हैं

बोनस न मिले तो वो रोता नही हैं।

माँ और बीवी दोनों उसको प्यारी हैं।

पूरे घर की उसके ऊपर ही जिम्मेदारी हैं।

इतना सब देकर भी वो स्वार्थी हैं।

लोग फिर भी कहते हैं कि समाज पुरुष प्रधान हैं।

ये भी तो एक तरह का गम ही है।

गलती किसी की भी हो लेकिन दोषी तो हम ही हैं।

तो भाई जिंदगी में कभी रोने का नहीं।

आंसू के दाग शर्ट से धोने का नहीं।

कल हो न हो ये फिल्मी बात हैं।

मगर बाहर की भीड़ खुद को खोना नही हैं।

 

 

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