दुनिया में सबसे मुश्किल काम अगर कोई है तो वो है कवि के हृदय को पढ़ना । कोई भी छोटी से छोटी घटना भी कवि के हृदय पटल पर जिस रूप में उतरती है हर सामान्य व्यक्ति उसे नहीं देख सकता , एक भाव जो कवि के मन में उठता है बो हर व्यक्ति के मन में उठना नामुमकिन है ।
कवि का हृदय कोमल भावों से भरा होता है उसका हृदय को कोई चित्र अगर स्पर्श कर जाये तो वह उसे अपनी कलम की सहायता से गीत का रूप दे देता है, जैसे ''पन्त" को नौका विहार में नदी, उसका जल, उसके किनारे आकर्षित कर गए , आकाश और तारों के प्रकाश से सुसज्जित कर उन्होंनें एक सुंदर स्त्री का रूप का रूप दे दिया ।
जाने कितने ऐसे मजबूर लोग हैं, जो पेट के लिये काम करते हैं मेहनत करते हैं हम हर दिन हर तरफ देखते हैं , किन्तु निराला जी ने अपनी कविता" वह तोड़ती पत्थर" में इलाहाबाद के पथ पर धूप में काम कर रही एक महिला को अपनी कविता का माध्यम बनाया और शोषण और शोषितों के प्रति एक आवाज उठाई । दिनकर जी ने "जला अस्थियाँ बारी-बारी" कहकर क्रांतिकारियों की जय के नारे लगाये । वहीं शुक्ल जी तो अशोक के फूलों को अपने साहित्य में लेकर आये। कवि का हृदय कभी बालक बनकर बागों में तितली पकड़ने को व्याकुल होता है तो कभी प्रेम में असफल निराश प्रेमी की तरह रेगिस्तान की धुप में खो जाता है जहाँ उसे रेत के गुबार से ढूँढ निकाल पाना मुश्किल हो जाता है । कभी वह नदियों और झरनों के शीतल जल में प्रवाहित होना चाहता है तो कभी पत्थरों और चट्टानों पर को पार करता ऊंचाई पर जाने के लिये उत्सुक हो जाता है , कभी सागर की लहरों में अपने मन की नौका को लहरों की दिशा में ले जाता है तो कभी समाज की विसंगतियों से व्यथित हो जाता है ।
इसीलिये तो कवियों के ह्रदय को समझ पाना कठिन है कवि हृदय कब समस्त पृथ्वी से लेकर सागर की लहरों पर होता हुआ पहाड़ों पर जाकर लौट आता है इसका अनुमान लगाना मुश्किल है । कवियों का ह्रदय का कहीं तो करुणा से भरा होता है तो कभी उनके हृदय में अन्याय और अत्याचारों के प्रति क्रोध की ज्वाला धधक रही होती है ।
कवि हृदय पा लेना एक बहुत बड़ी प्रतिष्ठा है, कवि के मन का डर समाप्त हो जाता है, कवि को कोई बन्धन नहीं होता , उसे किसी सत्ता या हुकूमत का भय नहीं होता । कवि बन जाना एक बहुत बड़ी प्रतिष्ठा है ।